कर्नाटक में भी चलेगा जातिवाद का ट्रंपकार्ड

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कर्नाटक। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजर है। यहां 12 मई को मतदान होने है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि कर्नाटक में भाजपा का विजय रथ, भगवा लहराने में सफल होगा या गुजरात से निकल कर कॉग्रेस अब अपना गढ़ बचाने में सफल होगा?

राजनीति के जानकार इसे वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का रिहल्सल भी मान रहे हैं। कहतें हैं कि दक्षिण में कदम रखने के लिए कर्नाटक को हासिल करना भाजपा के लिए बहुत ज़रुरी है। वहीं, कांग्रेस के लिए कर्नाटक में जीत दर्ज करके भाजपा के मनोबल को गिरा देने का यह सबसे अच्छा मौका है।
अब आइए कर्नाटक की राजनीति को समझने की कोशिश करतें हैं। दरअसल, कर्नाटक में भी देश के अन्य राज्यो की तरह इस बार जातीय मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है। बहरहाल, भाजपा और कॉग्रेस दोनो ही कर्नाटक के लिंगायत समाज को लुभाने के लिए एड़ी- चोटी का जोर लगा रही है। इस कड़ी में कांग्रेस ने लिंगायत समाज को अल्पसंख्यक होने का दर्जा दे कर राजनीति का ड्रंपकार्ड खेल दिया है। बतातें चलें कि लिंगायत समाज लम्बे समय से इसकी मांग कर रहे थे। वहीं, भाजपा ने लिंगायत नेता येदियुरप्पा को सीएम का उम्मीदवार बनाकर एक अलग चाल चली है। ऐसे में कर्नाटक का लिंगायत समाज यदि विभाजित हुआ तो इसका लाभ कॉग्रेस को मिलना तय माना जा रहा है। बतातें चलें कि कर्नाटक में लिंगायत का 17 फीसदी वोट पर कब्जा है और कर्नाटक के करीब 100 सीटों पर इसका जबरदस्त प्रभाव रहा है। वर्तमान में कर्नाटक विधानसभा में लिंगायत के 52 विधायक हैं।
कर्नाटक में लिंगायत के बाद वोक्कालिंगा समाज का राजनीति पर जबरदस्त असर से इनकार नही किया जा सकता है। वोक्कालिंगा की जनसंख्या मात्र 11 प्रतिशत के करीब ही हैं। बावजूद इसके यह समाज हमेशा से कर्नाटक की राजनीति को प्रभावित करता रहा है। हालांकि, वोक्कालिगा के तरफ से अभी तक चीज़ें साफ नहीं हो पाई हैं कि उनका वोट या झुकाव किस पार्टी की तरफ जाने वाला है? किंतु, इतना तो स्पष्ट है कि लिंगायत नेता येदियुरप्पा को सीएम की कुर्सी पर यदि वोक्कालिंगा के मतदाता स्वीकार कर लें, तो यह किसी चमत्कार से कम नही होगा।
कर्नाटक में अब तक के राजनीतिक रूझान को देखें तो वोक्कालिंगा पर कर्नाटक के जदएस का सर्वाधिक प्रभाव रहा है और इस बार जदएस ने बसपा से गठबंधन करके वोक्कालिंगा के अतिरिक्त दलित वोटरो में जबरदस्त सेंधमारी की तैयारी कर ली है। बतातें चलें कि कर्नाटक में दलित का 19 फीसदी वोट है और जानकार मानते है कि यदि जदएस-बसपा गठबंधन को दलितो का 40 फीसदी से अधिक समर्थन मिल गया, तो भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
अब बात मुस्लिम वोटों की करें, तो तस्वीर बिल्कुल साफ है। देश की अन्य हिस्सो की तरह ही कर्नाटक में भी अल्पसंख्यक मतदाता भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखाई पड़तें हैं। स्मरण रहें कि कर्नाटक में 16 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाता है और इस पर कॉग्रेस की पैनी नजर है। हालांकि, जदएस-बसपा गठबंधन यहां भी सेंधमारी करने की पुरजोर कोशिश में है और इनकी कोशिश कामयाब हुई तो यहां पर कॉग्रेस की मुश्किलें बढ़ जायेगी। ऐसे में देखना बाकी है कि 12 मई को कर्नाटक के मतदाता क्या फैसला करतें हैं?

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