सूख चुकी आंखों से टपकता हुआ दर्द किसका है

आखिर कब तक छलनी होता रहेगा मां का कलेजा

मदर्स डे स्पेशल

कौशलेन्द्र झा

स्थान- पुलवामा, कुलगाम और शोपियां सहित दक्षिण कश्मीर का पुरा इलाका। एक तरफ, हाथो में बंदूके थामें भारतीय सेना के जवान। तो दूसरी ओर घात लगाए पाक प्रशिक्षित आतंकी। … और गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच पल भर में ढ़ेर होती जिंदगी। आखिर, इनकी भी तो माएं होंगी। गोली, इसके सीने पर लगे या उसके सीने पर। छलनी तो मां का ही कलेजा होता होगा।
दुनिया भर में मदर्स डे की धूम मची है। फिर वह कौन है, जो किसी मां के दर्द की परवाह किये बिना उसके कलेजे के टुकड़ो को उकसा रहा है? उनके हाथो में बंदूके थमा रहा है और फिर किसी मां से उसका बेटा छिन लेने को जेहाद बता रहा है‌? क्या कभी आप ऐसे किसी मां से मिलें हैं, जिनके कलेजे के टुकड़े को बेवजह, अकारण की छिन लिया गया हो? क्या कभी आप उन मां के आंखों में झांके है, जिसे आज भी अपने लाडले के घर लौटने का इंतजार है? जिसकी सूख चुकी आंखों से दर्द टपकता है।
मदर्स डे के मौके पर शुभकामनाओं का स्वांग रचने से कुछ नही होगा। समय आ गया है कि इस विषय को लेकर पुरे दुनिया में गंभीरता से मंथन होना चाहिए। जब सभी धर्मो में मां को सर्वोपरी बताया गया है। फिर उसी मां से, उसके कलेजे का टुकड़ा छिन लेना, कौन सा धर्म है? क्या इस पर मिल बैठ कर विचार नही होना चाहिएं? क्रांति के महान जनक कार्ल मार्क्स ने लिखा है कि क्रांति का सबसे पहला उद्गम स्थल मनुष्य के विचारो से होता है। तो क्या आज मदर्स डे के मौके पर हमे वैचारिक क्रांति के लिए खुद को तैयार करने का संकल्प नही लेना चाहिए? क्या पुरे विश्व में इसको लेकर जोरदार बहस नही होना चाहिए। यदि हां, तो यही होगा सच्चे अर्थो में मदर्स डे का वास्तविक औचित्य। वर्ना, साल में एक बार मां को याद कर लेने भर से किसी का कुछ भी, भला नही होने वाला है।

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